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भगवान परशुराम द्वारा नारी-उत्थान
भगवान परशुराम का उल्लेख भारतीय साहित्य में आज से करीब 1500 साल पहले का मिलता है। इसमें इन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार बताया गया है।
परशुराम के अवतार लेने का उद्देश्य यह बताया गया है कि भरतभूमि पर आततायी गतिविधियाँ बढ गई थी और तत्कालीन समाज में विभिन्न बुराइयाँ घर कर गई थी। सामान्य-जन भयाक्रांत था और शासकवर्ग इस तरफ उदासीन हो चुका था। बल्कि क्षत्रिय वर्ग स्वयं इनमें सम्मिलित हो गया था। ऐसे में भगवान परशुराम का अवतार ब्राह्मण कुल मे पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका के घर हुआ।
उस काल में समाज वर्ण व्यवस्था से संचालित होता था जिसके अनुसार ब्राह्मण का कर्तव्य वेदाध्ययन एवं शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना होता था। लेकिन चूंकि भगवान का तो उद्देश्य आतताइयों को नष्ट करना था।अतः उन्होंने वर्ण-व्यवस्था मे परिवर्तन करना आवश्यक समझा और शस्त्र धारण किया जो कि क्षत्रिय वर्ण का कार्य था।
तत्कालीन ब्राह्मण समाज मे स्त्रियों की दशा पीड़ादायक थी और नारीवर्ग अपने ही समाज के पुरूष वर्ग से पीड़ित हो गया था। इसके समाधान के लिए फरसे का उपयोग करना उचित नहीं था। अतः उन्होंने ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूया, ऋषि अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा और अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से नारी-जागृति अभियान का संचालन किया।
मेरे लेखन का प्रमुख उद्देश्य वर्तमान में अपने समाज में नारी की दशा को इंगित करना और इसमें सुधार करना है। आज लड़कियों की शादी पुरूष-वर्ग तय करता है। बहुतायत मेँ यह देखने में आता है कि उसका दृष्टिकोण यही रहता है कि कैसे भी छोरी को धोरे चढा दिया जाय। लड़की की शादी के समय सब अपने हां मे हां मिला देते हैं। परंतु कुछ समय बाद उसके ससुराल पक्ष में कोई न कोई खामी बता कर लड़़की के पीहर का द्वार बंद कर लेने का रास्ता सुझाया जाता है। जो परिवार इनका कहा मान लेता है, उसकी ब्याहिता बेटी का पीहर हमेशा के लिए बंद हो जाता है। ऐसी ब्याहिताओं का रुदन एवं पीड़ा यत्र-तत्र समाज में देखने को मिल जाएगी। उस मां और उस बेटी का क्रंदन कोई नहीं सुनता।उनकी आत्मा की हाय का ही परिणाम है कि अपना समाज वांछित गति से प्रगति नहीं कर पाया है। इस समाज के मठाधीशों के अहंकार का ही नतीजा है कि, मेरे देखे आज से पचास वर्ष पूर्व भी मां-बेटी और भाई-बहिन पीड़ा के इस दंश को झेलते थे, और आज भी बहिनें इस समाज में जन्म लेना अपना दुर्भाग्य बता रही हैं। कहां हो रही है उन्नति और कहां हो रहा है तथाकथित सकारात्मक परिवर्तन!
अगर पुरूष वर्ग इसका समाधान निकालने में अब भी असफल रहता है तो वह दिन दूर नहीं जब घरकी स्त्रियां घोषणा कर देंगी कि भाड़ में जाय ऐसा समाज। अवसर-मौके मेरी बेटी तो घर में आएगी। और उस नारी-शक्ति का तब तुम सामना नहीं कर पाओगे।